हर बात पर ‘वाह बेटा’ कहना बंद करो, वरना भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम, फिर कहोगे, किसी ने पहले क्यों नहीं बताया!

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 अगर आप भी बच्चे की बात-बात में तारीफ करते हैं, तो थोड़ा संभल जाइए, क्योंकि चाइल्ड स्पेशलिस्ट्स डॉक्टर मोहित सेठी का कहना है कि जब बच्चा हर छोटी बात पर बिना मेहनत के भी तारीफ पाने का आदी हो जाता है, तो वह असली मेहनत की अहमियत समझना बंद कर देता है।

stop saying well done beta for everything or face the consequences later and say wish someone had warned me
आमतौर पर बच्चों को मोटिवेट करने के लिए माता-पिता उनकी तारीफ करते हैं, जिससे वे और बेहतर करने की कोशिश करें। सही समय पर की गई सराहना बच्चों को आत्मविश्वास देती है और उन्हें सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन कई बार यह भी देखने को मिलता है कि कुछ पैरेंट्स बच्चों की हर छोटी-छोटी बात पर तारीफों के पुल बांध देते हैं, फिर चाहे वह काम वास्तव में सराहना के काबिल हो या नहीं।

माता-पिता का यह रवैया भले ही उन्हें प्यार और मोटिवेशन से भरा लगता हो, लेकिन अनजाने में यह बच्चों के व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे बच्चों में धीरे-धीरे झूठे आत्मविश्वास की भावना पनप सकती है और वे असल मेहनत के महत्व को समझना बंद कर देते हैं। इसलिए इस बात का ध्यान रखें, वरना बाद में आपको लगेगा कि काश पहले कोई बता देता।

वहीं, हाल ही में पीडियाट्रिशियन डॉ. मोहित सेठी ने इंस्टाग्राम पर जारी एक वीडियो में इसी विषय पर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर माता-पिता बात-बात पर बच्चों की तारीफ करते रहेंगे, तो बच्चे को यह लगने लगता है कि माता-पिता की शाबाशी तो बिना किसी खास मेहनत के भी मिल जाती है। इसलिए धीरे-धीरे बच्चा यह मानने लगता है कि उसे कुछ बड़ा या खास करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हर हाल में उसे सराहा ही जाएगा, जो कि उसके भविष्य के लिए ठीक नहीं इसलिए पैरेंट्स ऐसा न करें। आइए जानते हैं कि उन्होंने और क्या कुछ कहा।

तारीफ जरूरी है, लेकिन सच्ची होनी चाहिए

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर मोहित सेठी कहते हैं कि फिल्म 'दंगल' में आमिर खान ने अपने बच्चों को शाबाशी तब दी थी, जब उन्हें लगा कि उन्होंने कुछ ऐसा हासिल किया है, जो वाकई तारीफ के काबिल है। यही बात हर पैरेंट को समझनी चाहिए कि बच्चों की तारीफ जरूरी है, लेकिन तभी जब वाकई वह सराहाना के काबिल हो और पूरी तरह से जस्टिफाईड हो।

पैरेंट्स ऐसे रिएक्ट न करें कि बच्चे ने नेशनल ने जीत लिया

ऐसा न हो कि बच्चे ने सिर्फ पार्टिसिपेशन ट्रॉफी जीती हो और आप ऐसे रिएक्ट कर हैं कि जैसे उसने नेशनल लेवल पर कोई बड़ी जीत हासिल कर ली हो। आपके ऐसे ओवर प्रशंसा वाले बर्ताव से बच्चे को लग सकता है कि आपकी तारीफें झूठी या फेक हैं। इससे उसके भीतर यह सोच भी विकसित हो सकती है कि इनकी तारीफ तो मुझे बिना कुछ करे ही मिल जाती, तो जिंदगी में कुछ खास करने की जरूरत ही क्या है?

पीडियाट्रिशियन अंत में कहते हैं कि कि पैरेंट्स को अपनी शाबाशी को एक ऐसा ‘एसेट’ बनाना चाहिए, जिसे पाने के लिए मेहनत करें। इसलिए पैरेंट्स इस बात का ध्यान रखें।

डिस्क्लेमर: लेख में दी गई सूचना पूरी तरह इंस्टाग्राम रील पर आधारित है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।
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